PROPHECY ABOUT PROPHET MUHAMMAD IN SAMAVEDA
The Samaveda (sāman "song" and veda "knowledge"), is the Veda of melodies and chants. It is an ancient Vedic Sanskrit text, and part of the scriptures of Hinduism. The exact century of Yajurveda's composition estimated between 1200 and 1000 BCE. The Samaveda is composed in Vedic Sanskrit language, and it is a collection of 6 chapters (adhyayas) with about 1,875 verses (mantras).
There are many prophecies about the Prophet Muhammad (PBUH) in the hindu religious book Samaveda, one of them is mentioned in Samaveda Purvarcika: Chapter No. 2, Mantra No. 152 (Samveda Purvarcika, chapter 2, section 4, Verse 8), (Archik: 01, Adhyay 02, Dashati 04, Mantra 08).
Mantra in Devnagari ( मंत्र देवनागरी ):
ओ३म् अहमिद्धि पितुष्परि मेधामृतस्य जग्रह ।
अह सूर्य इवाजनि॥ १५२
Mantra in Roman/Latin Sanskrit:
o3m ahamiddhi pituṣpari medhāmṛtasya jagraha |
aha sūrya ivājani || 152
English Translation:
I have received from my father super intelligence of the universal mind and law, I have realise it too in the soul, and I feel reborn like the refulgent sun.
Urdu Translator: Syed Faqeer Haider
(coming soon)
Hindi Translation: Pandit Harisharan Siddhantalankar
ज्ञान के बिना मनुष्य का कल्याण सम्भव नहीं, परन्तु ज्ञान-प्राप्ति बड़ा तीव्र तपव श्रम चाहती है, अतः मनुष्य कल्याण-प्राप्ति के किसी सरल मार्ग की खोज में रहता है । आधुनिक जगत् में सन््तों की वाणियों ने भक्ति के रूप में उसे वह सरल मार्ग प्राप्त करा ही दिया है, परन्तु क्या ज्ञानशून्य भक्ति से कभी कल्याण सम्भव हो सकता है? नहीं, और कभी नहीं । वेद स्पष्ट कह रहा है कि (तमेव विदित्वाड तिमृत्युमेति नान्यः पन्या विद्यते5 यनाय) उम प्रभु के ज्ञान के बिना मृत्यु को लाँघने व मुक्त होने का अन्य कोई मार्ग नहीं है । प्रभु ने मनुष्य को सृष्टि के आस्मभमें 'वेद-ज्ञान ही दिया था । दो वस्तुएँ इसलिए नहीं कि मनुष्य उनमें तुलना न करने लग जाए । प्रभु ने हमारा नाम ही 'मनुष्य' इसलिए रबखा था कि हम सदा अवबोध व ज्ञान प्राप्तिरूप लक्ष्य को न भूलें । वेद में प्रभु ने तीन काण्ड रबखे हैं-ज्ञान, कर्म और उपासना प्रभु ने ज्ञानप्राप्ति के लिए ज्ञानेन्द्रियाँ व कर्म करने के लिए करमेंद्ध्रियाँ दी हैं । इनके अतिरिक्त उपासना के लिए कोई उपासनेन्द्रिय नहीं दी । वस्तुतः ज्ञानपूर्वक कर्म करने से ही उपासना हो जाती है, अत: अलग इन्द्रिय की आवश्यकता भी नहीं है । मस्तिष्क-प्रयोग में श्रम है, हस्तप्रयोग में श्रम है। हृदय- गति तो स्वयं होती रहती है एवं ज्ञान और कर्म होने पर उपासना स्वतः हो जाती है । चतुर्विध भक्तों में (ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्) ज्ञानीभक्त ही प्रभु को आम्मतुल्य प्रिय है । इस ज्ञान-प्राप्ति के लिए इस मन्त्र का ऋषि ' वत्स ' प्रभु से उच्चारण (पुरस्तात् शुक्र उच्चरत्) किये गये वेदमन्ह्नों का उच्चारण करता है (वदतीति वत्स:), इसीलिए यह प्रभु का प्रिय होता है (वत्सः -प्रिय) | कण-कण करके ज्ञान का संग्रह करते चलने से यह 'काण्व' कहलाता है । यह वत्स कहता है कि (अहम) मैं (इत् हि) सचमुच, निश्चय से (पितु:) ज्ञानदाता उस परमपिता से (ऋतस्य) सत्य की (सत्यज्ञान की) (मेधाम्) बुद्धि को (परिजग्रह) सर्वतः ग्रहण करता हूँ । सब सत्य ज्ञानों को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील होता हूँ | इस प्रकार सत्यज्ञान के प्रकाश को प्राप्त करके (अहम मैं (सूर्य: इव्) सूर्य की भाँति (अजनि) हो गया हूँ । अज्ञानान्धकार के दूर हो जानेपर ही मानव का कल्याण होता है । यह प्रकाश सब पाप-कालिमा को धो डालता है ।
Prophet Muhammad (PBUH) in 4 Vedas
All these References are confirmed by Syed Faqeer Haider himself. If you have any questions or would like to know about any other topic, please let us know in the comment section below or Email us at bawatonishah@gmail.com
JazākAllāh thank you so much for visiting bawatonishah.blogspot.com
Allah Rabulizzat Aap Ko Hamesha Khush Rakhy Ameen 🙏
2 Comments
Bhai aur asan lafzo me hota to samjhne aur samjhane me asani hoti
ReplyDeleteInshahallah Hum Aik Book Likh Rahe Hain Jis Mein In Sub References Ki Full Aur Easy Explanation Be Aapko Milegi, Inshahallah Humain Puri Umeed Hai Us Book Say Aap Ko Zarur Samj Ayegi, Allah Rabul Izzat Aap Ko Hamesha Khush Rakhe Ameen
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