Samaveda Purvarcika: Mantra Number 64

PROPHECY ABOUT PROPHET MUHAMMAD IN SAMAVEDA

The Samaveda (sāman "song" and veda "knowledge"), is the Veda of melodies and chants. It is an ancient Vedic Sanskrit text, and part of the scriptures of Hinduism. The exact century of Yajurveda's composition estimated between 1200 and 1000 BCE. The Samaveda is composed in Vedic Sanskrit language, and it is a collection of 6 chapters (adhyayas) with about 1,875 verses (mantras).

There are many prophecies about the Prophet Muhammad (PBUH) in the hindu religious book Samaveda, one of them is mentioned in Samaveda Purvarcika: Mantra Number 64 (Archik: 01, Adhyay 01, Dashati 07, Mantra 02).

    Mantra No. 64  

Mantra in Devnagari ( मंत्र देवनागरी ):
ओ३म् चित्र इच्छिशोस्तरुणस्य वक्षथो न यो मातरावन्वेति धातवे ।
अनूधा यदजीजनदधा चिदा ववक्षत्सद्यो महि दूत्यां३चरन्॥ ६४

Mantra in Roman Sanskrit:
o3m citra icchiśostaruṇasya vakṣatho na yo mātarāvanveti dhātave | 
anūdhā yadajījanadadhā cidā vavakṣatsadyo mahi dūtyāṃ3caran || 64

English Translation: 
Wondrous is the invigorating and sustaining power of the newly risen youthful Agni which never goes to its parental source for food and energy replenishment. And if you say that the udderless creator has given it birth, even so, going on its great ambassadorial mission, it carries the fragrant message of yajna to the divinities immediately on its birth.
 
Urdu Translator:  Syed Faqeer Haider
(coming soon)
 
Hindi Translation: Pandit Harisharan Siddhantalankar
मानव जीवन का प्रथम पड़ाव ब्रह्मचर्यकाल है । इसमे (शिशोः) शिशु (शो तनूकरणे) अपनी बुद्धि को तीव्र करनेवाले का तथा (तरुणस्य) तरुण (तू) वासनाओं को तैर जानेवाले का (वक्षथः) विकास (वक्ष) (चित्र इत्‌) सचमुच अद्श्वुत है । ब्रहमचर्यकाल मे यदि उसने दो बातो काही ध्यान रदखा कि ९. बुद्धि को तीव्र करना है तथा २. वासनाओं का शिकार नहीं होना है त यह उसकी प्रशंसनीय सफलता होगी । इसके बाद गृहस्थ मै वह (धातवे) पालन-पोषण के लिए (मातरौ अनु) माता - पिता के पीके (न एति) नहीं नाता तो यह प्रशंसनीय है । गृहस्थ म तौ प्रवेश ही तब करना चाहिए जबकि ' धी शरं सतीम्‌ ' = ज्ञान व धन का उसने सम्पादन कर लिया हो । गृहस्थं बनकर तो उसे स्वंय माता-पिता की सेवा करनी है, न कि सेवा लेनी । अब गृहस्थ का सम्यक्‌ पालन करने के बाद (यत्‌) जब वह अपने को ' (अनूधा) ' अन्तःपुर निन घर के बिना (अजीजनत्‌) कर लेता है, अर्थात्‌ वानप्रस्थ बन जाता है ओर उसकी कुटिया का द्वार सबके लिए खुला रहता है तब यह भ बड़ी प्ररंसनीय बात है । (अध चित्‌) अब इस वानप्रस्थ के बाद ही, संन्यासी बन (सद्यः) वह शीघ्र ही (महि दूत्याम्‌) महान्‌ दूतकर्म को (चरन्‌) करता हुआ (आववक्षत्‌) वेदज्ञान कौ सर्वत्र ले-नाता है, अर्धात्‌ पहँचाता है । इस प्रकार अपने जीवन क चारो पड़ाव को प्रशंसनीय प्रकार से बिताता हुआ यह सचमुच इस मन्त का ऋषि "उपस्तुत बनता है । हदय की वासनाओीं के उद्र्हण के कारण स्तुति किये जाने से यह वार्हव्य ' कहलाता है ।

Prophet Muhammad (PBUH) in 4 Vedas  

RIGVEDA                  : Coming Soon                               
SAMVEDA                : Coming Soon

YAJURVEDA             : Coming Soon
ATHARVAVEDA        : Coming Soon













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